Wednesday 25 May 2016

जनवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम


लखनऊ 24 अगस्त 2014 कैफ़ी आज़मी सभागार, निशातगंज में जनवादी लेखक संघ के तत्वाधान में वरिष्ठ लेखक एवं संपादक डॉ गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता एवं डॉ संध्या सिंह के कुशल सञ्चालन में बृजेश नीरज की काव्यकृति ‘कोहरा सूरज धूप’ एवं युवा कवि राहुल देव के कविता संग्रह ‘उधेड़बुन’ का लोकार्पण एवं दोनों कृतियों पर परिचर्चा का कार्यक्रम आयोजित किया गया|

कार्यक्रम के आरम्भ में प्रख्यात समाजवादी लेखक डॉ यू.आर. अनंतमूर्ति को उनके निधन पर दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गयी| मंचासीन अतिथियों में युवा कवि एवं आलोचक डॉ अनिल त्रिपाठी, जलेस अध्यक्ष श्री अली बाकर जैदी, समीक्षक श्री चंद्रेश्वर, युवा आलोचक श्री अजित प्रियदर्शी ने कार्यक्रम में दोनों कवियों की कविताओं पर अपने-अपने विचार व्यक्त किए| परिचर्चा में सर्वप्रथम कवयित्री सुशीला पुरी ने क्रमशः बृजेश नीरज एवं राहुल देव के जीवन परिचय एवं रचनायात्रा पर प्रकाश डाला| तत्पश्चात राहुल देव ने अपने काव्यपाठ में ‘भ्रष्टाचारम उवाच’, ‘अक्स में मैं और मेरा शहर’, ‘हारा हुआ आदमी’, ‘नशा’, ‘मेरे सृजक तू बता’ शीर्षक कविताओं का वाचन किया| बृजेश नीरज ने अपने काव्यपाठ में ‘तीन शब्द’, ‘क्या लिखूँ’, ‘चेहरा’, ‘दीवार’ कविताओं का पाठ किया|

परिचर्चा में युवा आलोचक अजित प्रियदर्शी ने राहुल देव की कविताओं पर अपनी बात रखते हुए कहा कि राहुल की कविताओं में प्रश्नों की व्यापकता की अनुभूति होती है| यही प्रश्न उनकी उधेड़बुन को प्रकट करते हैं| राहुल अपनी छोटी कविताओं में अधिक सशक्त हैं| राहुल अपनी कविताओं में जीवन को जीने का प्रयास करते हैं| डॉ अनिल त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में सर्वप्रथम बृजेश नीरज की रचनाधर्मिता पर अपने विचार प्रकट किए- बृजेश नीरज की कृति समकालीन कविता के दौर की विशिष्ट उपलब्धि है| उनकी कविताओं में लय, कहन, लेखन की शैली दृष्टिगोचर होती है| वे अपना मुहावरा स्वयं गढ़ते हैं| इस काव्य संग्रह का आना इत्तेफ़ाक हो सकता है किन्तु अब यह समकालीन हिंदी कविता की आवश्यकता है| राहुल की छोटी कविताएँ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं| चंद्रेश्वर पाण्डेय ने कहा कि- राहुल देव की कविताओं में तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग खटकता है| राहुल ने अपनी कविताओं में शब्दों को अधिक खर्च किया है, उन्हें इतना उदार नहीं होना चाहिए| कहीं-कहीं पर अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग हिंदी साहित्य में भाषा की विडंबना को परिलक्षित करता है| बृजेश नीरज संक्षिप्तता के कवि हैं, प्रभावशाली हैं| अपनी पत्नी के नाम को अपने नाम के साथ जोड़कर उन्होंने एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया है| उनकी रचनाधर्मिता सराहनीय है|

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव ने कार्यक्रम संयोजक डॉ नलिन रंजन सिंह को साधुवाद देते हुए कहा कि जब मानवीय संवेदनाएँ सूखती जा रही हैं ऐसे समय में ऐसी सार्थक बहस का आयोजन एक ऐतिहासिक क्षण है जिसमें श्री नरेश सक्सेना और श्री विनोद दास जैसे गणमान्य साहित्यकार उपस्थित हों| राहुल की कृति ‘उधेड़बुन’ एक युवा कवि के अंतस का प्रतिबिम्ब है| एक छटपटाहट लिए यह संग्रह एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है| यह समाज के बनावटी जीवन को उद्घाटित करता है| ‘उधेड़बुन’ रोमांटिक प्रोटेस्ट का कविता संग्रह है| बृजेश नीरज की कृति ‘कोहरा सूरज धूप’ में गंभीरता है| यह एक ऐसे सत्य की खोज़ है जिसमें जीवन के उच्चतर आदर्शों की उद्दामता है, मानवतावाद का बोध कराने की सामर्थ्य है| आज के सन्दर्भों में यह दोनों कृतियाँ महत्त्वपूर्ण और पठनीय हैं|

कार्यक्रम में संध्या सिंह, किरण सिंह, दिव्या शुक्ला, विजय पुष्पम पाठक, नरेश सक्सेना, डॉ कैलाश निगम, एस.सी. ब्रह्मचारी, श्री रामशंकर वर्मा, कौशल किशोर, अनीता श्रीवास्तव, डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव, प्रदीप सिंह कुशवाहा, केवल प्रसाद सत्यम, धीरज मिश्र, सूरज सिंह सहित कई अन्य गणमान्य कवि एवं साहित्यकार उपस्थित रहे|

Saturday 14 May 2016

लोकोदय आलोचना श्रंखला

पूँजी और सत्ता का खेल अब हिन्दी साहित्य में जोरों पर है। साहित्य जगत पर बाज़ार का प्रभाव अब स्पष्ट नज़र आता है। मठों और पीठों के संचालक, बड़े अफसर, पूँजी के बल पर साहित्य को किटी पार्टी में बदलने के इच्छुकपैकेजिंग और मार्केटिंग में माहिर दोयम दर्ज़े के रचनाकार पूरे साहित्यिक परिदृश्य पर काबिज होने के प्रयास में लगातार लगे रहते हैं। ऐसे रचनाकारों द्वारा खुद की खातिर स्पेस क्रिएट करने के लिए चुपचाप साहित्य कर्म में संलग्न लोकधर्मी साहित्यकारों को लगातार नज़रअंदाज़ करने, उनको हाशिए पर धकेलने की कोशिश की जाती रही है
  
हिन्दी में बहुत से कवि हैं जिनके लेखन पर मुकम्मल चर्चा नहीं की गयी हैऐसे बहुत से कवि हैं जिन्होंने वैचारिक पक्षधरता को बनाए रखते हुए लोक की अवस्थितियों व संघर्षों का यथार्थ खाका खींचा तथा सत्ता और व्यवस्था के विरुद्ध प्रतिरोध की भंगिमा अख्तियार की लेकिन उनके रचनाकर्म पर समुचित चर्चा नहीं हो सकी लोकोदय प्रकाशन ने ऐसे कवियों पर आलोचनात्मक  श्रंखला प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। इस श्रंखला का नाम होगा लोकोदय आलोचना श्रंखला इस श्रंखला के प्रथम कवि के रूप में  वरिष्ठ कवि तथा पत्रकार सुधीर सक्सेना के व्यक्तित्व, कृतित्व व काव्य रचना प्रक्रिया पर एक संपादित पुस्तक का प्रकाशन किया जाएगा किताब का संपादन किया जाएगा। इस पुस्तक का सम्पादन प्रद्युम्न कुमार सिंह और उमाशंकर सिंह परमार करेंगे

इस पुस्तक के लिए आलेख आमन्त्रित हैं। इच्छुक लेखक वर्ड फाइल के रूप में कृतिदेव या यूनिकोड फॉण्ट में अपने आलेख परिचय तथा नवीनतम फोटो के साथ इस ई-मेल पर ३० मई २०१६ तक भेज सकते हैं

आलेख भेजते समय यह उल्लेख अवश्य करें कि आलेख सुधीर सक्सेना पर केन्द्रित पुस्तक के लिए भेजा जा रहा है    

Friday 13 May 2016

हमारी सेवाएँ

लोकोदय प्रकाशन सीधे पाठक तक पुस्तकें पहुँचाने के लिए दृढ संकल्पित हैं पाठकों तक सीधी पहुँच बनाने के लिए हम इंटरनेट के माध्यमों सोशल मीडिया (वेबसाईट, फेसबुक, ट्विटर, लिंकेडिन, गूगल+ आदि), ऑनलाइन बिक्री की साइट्स (अमेज़न, इ-बे, शॉपक्लूज़, आदि) तथा अन्य भौतिक माध्यमों (पुस्तक बिक्री केंद्र, पुस्तक मेला, साहित्यिक आयोजन आदि) का प्रयोग करेंगे इनके साथ-साथ अन्य माध्यमों में लगातार और मजबूत होने के लिए संकल्पित हैं   

पुस्तक के वितरण के लिए हमारे पास उच्च कोटि की व्यवस्था है जिसमें इंटरनेट के सभी प्रतिष्ठित माध्यम सम्मिलित हैं
-अमेज़न.इन, फ्लिप्कार्ट.कॉम, ईबे.इन, सिम्पली.कॉम, पेटीएम्.कॉम, शॉपक्लूज़.कॉम, इंडियाबुक स्टोर.इन सहित तमाम मर्चेंट वेब साईट से पाठक लोकोदय प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तकें खरीद सकते हैं

उच्च कोटि की लाजिस्टिक्स सर्विस कंपनी से अनुबंध होने के कारण हम भारत की प्रतिष्ठित कोरियर कंपनी द्वारा पाठक तथा पुस्तक खरीदार को शानदार डाक सेवा प्रदान करते हैं     

लोकोदय साहित्य श्रंखला

लोकधर्मी साहित्यिक परम्परा से समकाल को जोड़ना आज के समय की जरूरत है इसलिए लोकोदय प्रकाशन द्वारा 'लोकोदय साहित्य श्रृंखला' प्रारम्भ करने का निर्णय लिया गया है। इसके अन्तर्गत लोकधर्मी कविता, लोकगीत, लोककथा, लोककला इत्यादि पर आधारित संकलन प्रकाशित किए जाएँगे। इस श्रृंखला का प्रारम्भ लोकधर्मी कविताओं के साझा संकलन के रूप में किया जाएगा।
लोकधर्मी कविताओं के साझा संकलनों की इस श्रृंखला का नाम 'कविता आज' होगा। इसके हर खण्ड में दो भूमिकाओं के साथ 21 महत्वपूर्ण लोकधर्मी कवियों की पाँच-पाँच कविताएँ, उनके परिचय तथा आलोचकीय टीप के साथ सम्मिलित होंगी।
'कविता आज-1' में सम्मिलित किए जाने वाले कवियों के नामों पर विचार कर लिया गया है। इस संग्रह के लिए नये और पुरानों कवियों के योग का ध्यान रखा गया है । 'कविता आज-1' में सम्मिलित होने वाले कवि हैं-विजेन्द्र, सुधीर सक्सेना, अनिल जनविजय, नासिर अहमद सिकन्दर, कुअँर रवीन्द्र, नवनीत पांडेय, मणिमोहन मेहता, बुद्धिलाल पाल, शहंशाह आलम, सन्तोष चतुर्वेदी, भरत प्रसाद, महेश पुनेठा, बृजेश नीरज, प्रेमनन्दन,अरुण श्री, रश्मि भरद्वाज, भावना मिश्रा, पीके सिंह, नरेन्द्र कुमार, नारायण दास गुप्त और शम्भु यादव।

'कविता आज' का सम्पादन उमाशंकर परमार और अजीत प्रियदर्शी करेंगे।

Tuesday 10 May 2016

समकालीन कविता कार्यक्रम की रिपोर्ट

प्रेस रिपोर्ट

आज दिनांक 08/05/2016 को लोकोदय प्रकाशन और अम्र भारती साहित्य एवं संस्कृति संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में समकालीन कविता पर एक दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का प्रारम्भ वरिष्ठ कवि-चित्रकार कुँवर रवीन्द्र के कविता-पोस्टरों की प्रदर्शनी के उदघाटन से हुआ. प्रदर्शनी का उदघाटन वरिष्ठ कथाकार गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव ने किया. इसके उपरान्त बृजेश नीरज की पुस्तक राजनीति के रंग तथा प्रदीप कुशवाहा की पुस्तक खुलती परतें का लोकार्पण नरेश सक्सेना, डॉ. धनञ्जय सिंह तथा कुँवर रवीन्द्र द्वारा किया गया.
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में समकालीन कविता में हाशिए के सवाल विषय पर चर्चा हुई. इस परिचर्चा में वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना, वरिष्ठ नवगीतकार डॉ. धनञ्जय सिंह, उ.प्र. जलेस के कार्यकारी सचिव तथा आलोचक नलिन रंजन सिंह, जलेस लखनऊ के सचिव अजीत प्रियदर्शी तथा युवा आलोचक उमा शंकर सिंह परमार ने प्रतिभाग किया.
कार्यक्रम के अंतिम सत्र में ५० कवियों का कविता पाठ हुआ. इसमें सम्मिलित होने वाले प्रमुख कवि थे डॉ. मधुकर अस्थाना, संध्या सिंह, शिशिर सागर, संतोष चतुर्वेदी, बृजेश नीरज, राहुल देव, भावना मिश्र, सुशीला पुरी, सोनी पाण्डेय, राजेन्द्र वर्मा, दिनेश त्रिपाठी शम्स, राहुल देव, तरुण निशान्त, राम शंकर वर्मा, धीरज मिश्र.

                                                           लोकोदय प्रकाशन

ई-मेल- lokodayprakashan@gmail.com

Tuesday 3 May 2016

बृजेश नीरज


नाम- बृजेश नीरज
पिता- स्व0 जगदीश नारायण सिंह गौतम
माता- स्व0 अवध राजी
जन्मतिथि- 19-08-1966
जन्म स्थान- लखनऊ, उत्तर प्रदेश
ईमेल- brijeshkrsingh19@gmail.com
निवास- 65/44, शंकर पुरी, छितवापुर रोड, लखनऊ-226001
सम्प्रति- उ0प्र0 सरकार की सेवा में कार्यरत
कविता संग्रह- कोहरा सूरज धूप 
साझा संकलन-त्रिसुगंधि’ (बोधि प्रकाशन), ‘परों को खोलते हुए-1’ (अंजुमन प्रकाशन), क्योंकि हम जिन्दा हैं (ज्ञानोदय प्रकाशन), ‘काव्य सुगंध-२ (अनुराधा प्रकाशन), अनुभूति के इन्द्रधनुष (अमर भारती)
संपादन- कविता संकलन- सारांश समय का
        अर्द्धवार्षिक पत्रिका- कविता बिहान में सह सम्पादक
        मासिक ई-पत्रिका- ‘शब्द व्यंजना के सम्पादक
सम्मान- विमला देवी स्मृति सम्मान २०१३
विशेष- जनवादी लेखक संघ, लखनऊ इकाई के कार्यकारिणी सदस्य 

केवल प्रसाद सत्यम


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उमा शंकर सिंह परमार



नाम – उमाशंकर सिंह परमार
काम- पढना, लिखना, समाज सेवा, किसान आन्दोलन से जुडाव, जनवादी लेखक संघ उत्तर प्रदेश का सदस्य 
विधा- आलोचना, कभी कभार कविता
प्रकाशन –  हिंदी की प्रमुख पत्रिकाओं जैसे कृति ओर, हिमतरु, नयापथ, हंस, प्रयाग पथ, सप्तपर्णी, दुनिया इन दिनों, प्रसंग, स्वाधीनता, वर्तमान साहित्य, जनपथ, लहक, जागरण, रस्साकसी,  गाथांतर, आदि में आलेखों का प्रकाशन|
 महत्वपूर्ण ब्लॉगों में प्रकाशन, लोकविमर्श ब्लॉग एवं आलोचना पत्रिका का लोकविमर्श का संपादन, गाथांतर के समकालीन कविता अंको का संपादन 
पता – द्वारा रमेश चन्द्र रस्तोगी, कालेज गेट के सामने, बाँदा रोड बबेरू, जनपद बाँदा २१०१२१

फोन – ०९८३८६१०७७६ 

Sunday 1 May 2016

संध्या सिंह


नाम ---- संध्या सिंह
जन्म – २० जुलाई १९५८
जन्म स्थान – ग्राम लालवाला, तहसील देवबंद, जिला सहारनपुर.
 शिक्षा  ---- स्नातक विज्ञान मेरठ विश्वविद्यालय
सम्प्रति  -- कुछ पत्र पत्रिकाओं में नियमित लेखन, हिन्दी के प्रचार प्रसार से जुडी साहित्यिक गतिविधियों में एवं काव्य पाठ में निरंतर सहभागिता, दूरदर्शन पर भी काव्य पाठ एवं कई पत्रिकाओं के परामर्श मंडल में सम्पादन सहयोग, इसके अतिरिक्त स्वतन्त्र लेखन |
प्रकाशित पुस्तकें -- ---- एक साझा संकलन कविता समवेत परिदृश्य काव्य संग्रह का सह संपादन, एक प्रकाशित काव्य संग्रह आखरों के शगुन पंछी‘. इसके अतिरिक्त सह संपादन में एक साझा संकलन ‘इत्र महकता मन का प्रकाशनाधीन एवं एक अपना गीत संग्रह ‘मौन की झंकार‘ प्रकाशनाधीन|

Wednesday 27 April 2016

आमंत्रण- साहित्यिक कार्यक्रम

लोकोदय प्रकाशन एवं अमर भारती साहित्य एवं संस्कृति संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में दिनांक ०८ मई २०१६ को ‘पोस्टर प्रदर्शनी, संगोष्ठी एवं कविता पाठ’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया है! इस कार्यक्रम में आप सभी मित्र सादर आमंत्रित हैं.

कार्यक्रम की रूपरेखा 

कार्यक्रम- पोस्टर प्रदर्शनी, संगोष्ठी एवं कविता पाठ 
दिनांक- 08 मई 2016 
स्थान- डिप्लोमा इंजीनियर संघ प्रेक्षागृह, 98, महात्मा गांधी मार्ग, राज भवन कॉलोनी, हज़रतगंज, लखनऊ- 226001
समय- प्रातः 10 बजे से सायं 4.00 तक 

प्रथम सत्र- कुँवर रवीन्द्र की कविता-पोस्टर प्रदर्शनी एवं परिचर्चा 
समय- प्रातः 10.00 बजे से 10.30 बजे तक

द्वितीय सत्र- संगोष्ठी
विषय- समकालीन कविता में हाशिए के सवाल
समय- प्रातः 10.30 बजे से दोपहर 01.00 बजे तक

भोजनावकाश- दोपहर 01.00 बजे से 1.30 बजे तक

तृतीय सत्र- कविता पाठ
समय- अपराह्न 1.30 बजे से सायं 4.00 बजे तक

संपर्क- 9838878270, 7376620633, 7388178459, 8423114555
ई-मेल- lokodayprakashan@gmail.com

कार्यक्रम स्थल

चारबाग रेलवे स्टेशन से कार्यक्रम स्थल तक का मार्ग

Thursday 10 March 2016

साथियों को पत्र

प्रिय साथी,

आज हिन्दी साहित्य मठाधीशों और प्रकाशकों के गठजोड़ में फंसकर अपने दुर्दिन की ओर अग्रसर है। प्रकाशन उद्योग पूँजी के हाथों का खिलौना बन चुका है। एक ओर प्रकाशन के नाम पर लेखकों से मोटी रकम वसूली जाती है तो दूसरी ओर सरकारी खरीद में पुस्तकों को खपाकर मोटा मुनाफ़ा कमाने के फेर में पुस्तकों के इतने ऊँचे दाम रखे जाते हैं कि पुस्तक आम पाठक की खरीदी पहुँच के बाहर हो जाती है। ऊपर से रोना यह कि पाठक कम हो रहे हैं, साहित्य की किताबें खरीदने में लोगों की रूचि नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि छोटे शहरों को छोड़ दीजिए बड़े शहरों तक में हिन्दी साहित्य की पुस्तकों की बिक्री के लिए कोई ठीक-ठाक दुकान नहीं है। जो दुकानें हैं भी वहाँ प्रकाशकों द्वारा पुस्तक पहुँचाने में कोई रूचि नहीं दिखाई जाती है। शार्ट-कट से पैसा कमाने की लालसा ने वह बाज़ार ही गायब कर दिया जहाँ ग्राहक पहुँचकर किताब खरीद सकें. प्रकाशकों द्वारा दरअसल मुनाफे के खेल में साहित्यिक पुस्तकों को पाठकों से दूर करने की यह साजिश है जिसमें सबसे अधिक शोषण लेखक का होता है। लेखक से न केवल मोटी रकम वसूली जाती है बल्कि पुस्तक बिक्री से होने वाली आय में उसकी हिस्सेदारी, जिसे रॉयल्टी कहते हैं, से भी वंचित किया जाता है।

इस खेल में तथाकथित वरिष्ठ लेखक भी शामिल हैं। आज सत्ता-प्रतिष्ठानों के इर्द-गिर्द चक्कर काटने वाले ऐसे नामधारी ही प्रकाशन ठिकानों को अपने कब्जे में लिए हुए हैं जिससे इनकी दाल गलती रहे। छद्म प्रतिबद्धता और वैचारिकता का मुखौटा पहने ऐसे नामचीन लेखक आजकल सत्ता-प्रतिष्ठानों से अपनी नजदीकियों को बरकरार रखने के फेर में पूँजीपतियों और ऊँचे पदों पर आसीन अधिकारियों व उनकी पत्नियों को साहित्यकार बनाने की मुहिम चलाए हुए हैं। इस पूरे परिदृश्य में सबसे अधिक नुकसान होता है नए रचनाकारों का। यह पूरा माहौल उन्हें मजबूर करता है इस या उस मठ पर माथा टेकने को। जो ऐसा नहीं करते वे हाशिए पर पड़े रह जाते हैं। दूसरा नुकसान उठाने वाला वर्ग है दूर-दराज़ के इलाकों, छोटे शहरों, गाँव-देहात में रहने वाले रचनाकारों का जिनके पास न तो पहुँच है, न संसाधन और न ही पैसा कि वे छप सकें। कुल मिलाकर परिणाम यह है कि प्रतिबद्ध, आम जनता के सुख-दुःख की बात करने वाली, लोक से जुड़ी रचनाएँ पाठकों तक पहुँच ही नहीं पातीं। पाठकों के सामने परोसा जाता है ढेर सारा कचरा।

ऐसे माहौल को देखते हुए लोक विमर्श के साथियों द्वारा अपने आन्दोलन को मजबूत करने के लिए लगातार यह जरूरत महसूस की जा रही थी कि अपना एक प्रकाशन होना चाहिए जिसके माध्यम से आन्दोलन से जुड़ी पत्र-पत्रिकाओं तथा साथियों की रचनाओं को पुस्तक रूप में प्रकाशित किया जा सके। साथ ही, प्रकाशकों द्वारा लेखकों-पाठकों के शोषण के खिलाफ खड़ा हुआ जा सके और साहित्य व आम पाठक के बीच विद्यमान दूरी को ख़त्म करके लोकधर्मी आन्दोलन का व्यापक प्रसार-प्रचार किया जा सके। यदि आन्दोलन का अपना प्रकाशन होगा तो आगे तारसप्तक की तर्ज़ पर लोक-सप्तक तथा हिंदी साहित्य के इतिहास के संपादन जैसी प्रस्तावित योजनाओं पर प्रभावी ढंग से काम किया जा सकेगा  इसलिए आन्दोलन से जुड़े सभी साथियों के अभिमत के अनुसार लोकोदय प्रकाशन प्रारम्भ किया गया है।

लोकोदय प्रकाशन एक सामूहिक प्रयास है। इस प्रकाशन की पहली प्राथमिकता कम मूल्य की पुस्तकें उपलब्ध कराना है। पुस्तक की बिक्री के लिए हम सीधे पाठकों तक अपनी पहुँच बनाने का प्रयास करेंगे। प्रकाशन के विभिन्न राज्यों में पुस्तक विक्रय केन्द्र हैं तथा अन्य जनधर्मी प्रकाशनों के साथ मिलकर देश भर में पठन-पाठन का वातावरण सृजित करने के लिए पुस्तक मेला आदि का आयोजन कराया जाएगा। हमारे प्रकाशन की पुस्तकें विभिन्न वेबसाईटों व ई-मार्केटिंग साईटों पर भी उपलब्ध रहेंगी।

प्रकाशन के सुचारू संचालन हेतु दो समूह बनाए गए हैं- सम्पादक मंडल तथा संचालन मंडलसम्पादक मंडल के सदस्यों का उत्तरदायित्व प्रकाशित होने वाली सामग्री की स्तरीयता बनाए रखना है जबकि संचालन मंडल के सदस्य प्रकाशन के सुचारू संचालन में सहयोग करेंगे। प्रकाशन से स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन तथा उन पुस्तकों को पाठकों तक पहुँचाने का कार्य आप सभी साथियों के सहयोग के बिना संभव नहीं है। इस कार्य में आपका सतत सहयोग और परामर्श प्रार्थनीय है। 

सादर आभार!

   आपका 
लोकोदय प्रकाशन 

Wednesday 3 February 2016

लोकोदय—एक समानांतर हस्तक्षेप

१-हमारा आन्दोलन

लोकविमर्श जनपक्षधर लेखकों / कवियों का सामूहिक आन्दोलन है। इस आन्दोलन का आरम्भ 2014 जनवरी से हुआ। इस आन्दोलन का पहला बड़ा आयोजन जून 2015 पिथौरागढ़ में सम्पन्न हुआ। इस आन्दोलन का मुख्य लक्ष्य राजधानी व सत्ता केन्द्रित बुर्जुवा साहित्य के प्रतिपक्ष में हिन्दी की मूल परम्परा लोकधर्मी साहित्य तथा गाँव और नगरों में लिखे जा रहे मठों और पीठों द्वारा उपेक्षित पक्षधर लेखन को बढावा देना है। नव उदारवाद व भूंमंडलीकरण के  फलस्वरूप जिस तरह से जनवादी लेखन को हाशिए पर लाने के लिए राजधानी केन्द्रित पत्रिकाएँ व प्रकाशन पूंजीपतियों की अकूत सम्पति द्वारा पोषित पुरस्कारों के सहारे साजिशें की जा रही हैं इससे साहित्य की समझ और व्यापकता पर प्रभाव पड़ा है। अस्तु विश्वपूंजी द्वारा प्रतिरोधी साहित्य को नष्ट करने के कुत्सित प्रयासों व लेखन में गाँव की जमीनी उपेक्षाओं के खिलाफ यह आन्दोलन दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ता जा रहा है। आज इस आन्दोलन में लगभग 100 साहित्यकार जुड चुके हैं। हम मठों, पीठों, पूँजीवादी फासीवादी साम्प्रदायिक ताकतों के किसी भी पुरस्कार, लालच, साजिश का विरोध करते हैं। हम साहित्य में उत्तर आधुनिकता के रूपवादी आक्रमण के खिलाफ 'लोकभाषा' व लोकचेतना  की नव्यमार्क्सवादी अवधारणा पर जोर देते हैं क्योंकि हमारा मानना है कि आवारा पूँजी के इस साहित्यिक संस्करण का माकूल जवाब लोक भाषा और लोक चेतना से ही दिया जा सकता है। लोकविमर्श कोई संगठन नहीं है। यह आन्दोलन वाम संगठनों को मजबूत करने के लिए है। हम छद्मवामपंथियों के खिलाफ हैं जो पद और पुरस्कार पाने के लिए अपनी ताकत व पैसा के प्रयोग करते हुए वैचारिकता को भी नीलाम कर देते हैं क्योंकि हमारा अभिमत है कि ऐसे लोगों द्वारा आम जनता में वाम के प्रति गलत छवि निर्मित होती है। लोकविमर्श आन्दोलन में सम्मिलित होने की केवल एक ही अर्हता है कि व्यक्ति लेखक हो और पक्षधर हो; मठों और पीठों, छद्म लेखकों से दूर आम जन के लिए लिखता हो व जमीन में रहने, खाने, सोने व लड़ने की आदत भी हो। हमारे आयोजन गाँव व छोटी जगहों पर होते हैं। हम होटल व बड़े भवनों का प्रयोग नहीं कर सकते हैं। जो भी सुविधा स्थानीय कमेटी देती है उसी का प्रयोग करना अनिवार्य होता है तथा न कोई मुख्य अतिथि होता है न कोई नेता या महान व्यक्तित्व होता है, सब आपस में कामरेड होते हैं और आपसी चन्दे से हर आयोजन होते हैं। जो भी साथी इस आन्दोलन में भागीदारी करना चाहें उपरोक्त शर्तों के साथ उनका स्वागत है, अभिनन्दन है।

२-लोकोदय

लोकोदय प्रकाशन लोकविमर्श आन्दोलन का अनुषांगिक व्यावसायिक प्रतिष्ठान है। लोकोदय प्रकाशन की स्थापना साहित्य में प्रभावी बाजारवाद के खिलाफ पाठकों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर की गयी है। हम पूँजीवादी बाजारीकरण के विरुद्ध जनपक्षधर लोकधर्मी साहित्य के प्रकाशन, प्रचार व प्रसार के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह जनपक्षधर लेखकों व कवियों का सामूहिक आन्दोलन है। हम आम प्रकाशनों के बरक्स कम कीमत पर श्रेष्ठ साहित्य आम जनता को उपलब्ध कराएँगे। प्रकाशन के विभिन्न राज्यों में पुस्तक बिक्रय केन्द्र हैं तथा अन्य जनधर्मी प्रकाशनों के साथ मिलकर देश भर में पठन-पाठन का वातावरण सृजित करने के लिए पुस्तक मेला आदि का आयोजन कराया जाएगा। हमारे प्रकाशन की पुस्तकें विभिन्न वेबसाईटों व ई-मार्केटिंग साईटों पर भी उपलब्ध रहेंगी।

३-लोकोदय के उद्देश्य

१- लोकोदय जनपक्षर व लोकधर्मी वाम लोकतान्त्रिक साहित्य व संस्कृति के अभिरक्षण, परिपोषण व प्रकाशन हेतु प्रतिबद्ध है।

२- लोकोदय लोकविमर्श आन्दोलन का अनुषांगिक व व्यावसायिक प्रतिष्ठान है। लोकविमर्श आन्दोलन से जुड़े लेखकों व जनवादी लेखक संघ के लेखकों का प्रकाशन हम अपने संगठन के नियमानुसार करेंगें।

३- लोकधर्मी साहित्य के प्रकाशन हेतु एक गैर व्यावसायिक सामूहिक कोष स्थापित है। जिसकी देखरेख लोकविमर्श आन्दोलन के वरिष्ठ साथियों द्वारा की जाएगी व साथियों द्वारा ही इस कोष की वृद्धि हेतु उपाय सुझाए जाएँगे। लोकोदय अपने स्तर से इस कोष की वृद्धि का हर सम्भव प्रयास करेगा।

४- लोकविमर्श आन्दोलन के अतिरिक्त अन्य लेखकों की किताबों का प्रकाशन गुणवत्ता, विचार व लोकोदय संस्था की व्यावसायिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा। इसका निर्णय हमारी संपादक कमेटी व संचालन कमेटी करेगी।

५- हम पुरानी व अनुपलब्ध आऊट आफ प्रिन्ट लोकधर्मी वाम किताबों के पुनर्प्रकाशन के लिए वचनबद्ध हैं। कोष की उपलब्धता के आधार पर हम समय समय पर ऐसी पुस्तकों का प्रकाशन करते रहेगें।

६-हम सभी ऐसे लेखकों की पुस्तकों का प्रकाशन करेगें जो दूर दराज गाँव व शहरों में संघर्ष कर रहे है़, जो उपेक्षित व प्रकाशकों द्वारा शोषित हैं।

७-हम किताबों को जनता के बीच ले जाएँगे व आम पाठक से प्राप्त टिप्पणियों को 'लोकोदयब्लाग में प्रकाशित करेंगे।

८-लेखकों को रायल्टी दी जाएगी जिसका हिसाब किताब हमारी वेबसाईट पर उपलब्ध रहेगा।

९- हम विधा के रूप में किसी भी कृति के साथ भेदभाव नहीं करेंगे। हम ग़ज़ल, गीत-नवगीत, छन्द, मुक्तक, विज्ञान, इतिहास, लोकसाहित्य व कोश आदि का भी प्रकाशन करेंगे।

१०- प्रकाशन की आर्थिक स्थिति के अनुसार हम समय समय पर लोकविमर्श द्वारा विमोचन व अन्य आयोजन कराए जाएँगे।  

४-हमारे मुख्य प्रकाशन
१- प्रतिपक्ष का पक्ष आलोचना - उमाशंकर सिंह परमार
२- कोकिला शास्त्र कहानी - संदीप मील
३- वे तीसरी दुनिया के लोग - कविता - बृजेश नीरज
४- आधुनिक कविता आलोचना - अजीत प्रियदर्शी
५- यही तो चाहते हैं वे - कविता - प्रेम नंदन


संपर्क
श्रीमती नीरज सिंह
लोकोदय प्रकाशन   
६५/४४, शंकर पुरी,
छितवापुर रोड, लखनऊ- २२६००१
मोबाइल- ९६९५०२५९२३
        ९८३८८७८२७०
ई-मेल- lokodayprakashan@gmail.com

 प्रकाशन के चालू खाते का विवरण 
Lokoday Prakashan
A\ C No. – 35553479436
Bank Name – State Bank Of India
Branch- Industrial Complex Sandila, Hardoi
Branch code- 06938
IFSC Code- SBIN0006938

Sunday 3 January 2016

घोषणा

लोकविमर्श आन्दोलन के तहत 2016 से जनपक्षीय व लोकधर्मी साहित्य को प्रकाशित कर कम मूल्य पर पाठक तक पहुँचाने की सहमति बनी थी । अत: इसी सहमति के तहत लखनऊ में 'लोकोदय' नाम से प्रकाशन का आरम्भ कर दिया गया है । प्रकाशन की सभी आवश्यक वैधानिक कार्यवाहियाँ पूरी हो चुकी हैं । व्यावसायिक फर्म के रूप में रजिस्टर्ड हो चुकी है । बिक्री हेतु विभिन्न शहरों में केन्द्र तय हो चुके हैं । नेट मे बिक्री हेतु बेवसाईट लांच हो चुकी है व कुछ प्रकाशनों के साथ मिलकर छोटे छोटे पुस्तक मेला आयोजित करने की भी बात तय हो चुकी है । लोकोदय का सारा काम श्रीमती नीरज सिंह  को सौंपा गया है । साथियों द्वारा चन्दा करके कोष एकत्र कर लिया गया है । इस कोष से अभी कुछ छ: किताबों का प्रकाशन होगा जिसकी घोषणा वरिष्ठ चित्रकार कुँवर रवींद्र जी करेंगें । लोकोदय के कोष व व्यवस्था हेतु एक संचालन कमेटी है जिसमें आठ सदस्य हैं व किताबों के प्रकाशन की मन्जूरी एवं जाँच के लिए एक सम्पादन कमेटी का गठन किया गया है जिसमें पांच सदस्य हैं । लोकोदय के संविधान की कुछ खास बातें ये हैं -
१- किताब का मूल्य कम रखा जाएगा ताकि सभी खरीद सकें ।
२- केवल पेपर बैक संस्करण ही छपेगा ।
३-लोकविमर्श के साथियों ने रायल्टी न लेने की सहमति दी है इस रायल्टी को कोष में जमा किया जाएगा ।
४- पुरानी लोकधर्मी व वैचारिक किताबें जो आऊट आफ प्रिन्ट हैं उनका पुन: प्रकाशन होगा ।
५- बिक्री इत्यादि से एकत्र कोष द्वारा लोक साहित्य, लोक भाषा  व इतिहास पर किताबों का प्रकाशन होगा ।